Search This Blog

मकर संक्रांति से जुड़े कुछ Intresting फैक्ट्स... #Makar Sankranti Best makar sankranti fact hindi





मकर सक्रांति में “मकर” शब्द मकर राशि को इंगित करता है जबकि सक्रांति का शाब्दिक अर्थ संक्रमन अर्थात प्रवेश करना है इस दिन सूर्य खोगोलीय पथ का चक्कर लगाते हुए धनु राशि में प्रवेश करता है अर्थात सूर्य का मकर राशि में प्रवेश ही मकर सक्रांति है इस इदं किसान अच्छी फसल के लिए भगवान को धन्यवाद देकर अपनी अनुकम्पा सदैव लोगो पर बनाये रखने का आशीर्वाद मांगते है इसलिए इसे फसलो का त्यौहार भी कहा जाता है |

भौगौलिक विवरण

पृथ्वी साढ़े 23 डिग्री अक्ष पर झुकी हुयी सूर्य की परिक्रमा करती है तब वर्ष में चार स्थितिया ऐसी होती है जब सूर्य की सीधी किरने दो बार (21 मार्च और 23 सितम्बर) को विषुवत रेखा पर तथा 21 जून को कर्क रेखा पर और 22 दिसम्बर को मकर रेखा पर पडती है वास्तव में चन्द्रमा के पथ को 27 नक्षत्रो में बाँटा गया है जबकि सूर्य के पथ को 12 राशियों में बांटा गया है भारतीय ज्योतिष में इन चार स्थितियों को 12 सक्रांतियो में बांटा गया है

खगोलीय तथ्य

कभी कभी यह त्यौहार 12, 13 या 15 को भी होता है यह इस बात पर निर्भर करता है कि सूर्य कब धनु राशि छोडकर मकर राशि में प्रवेश करता है सामान्यत: भारतीय पंचांग पद्दति की समस्त स्थितिया चन्द्रमा की गति को आधार मानकर निर्धारित की जाती है किन्तु मकर सक्रांति को सूर्य की गति से निर्धारित किया जाता है इसी कारण यह पर्व प्रतिवर्ष 14 जनवरी माघ कृष्ण पक्ष सप्तमी को मनाया जाता है हर साल सूर्य का धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश 20 मिनट की डेरी से होता है इस तरह तीन साल के बाद सूर्य 1 घंटे बाद और हर 72 साल में के दिन की देरी से सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है |

एतेहासिक तथ्य

एतेहासिक मान्यता है कि हिन्दू धर्म शास्त्रों के अनुसार मकर सक्रांति से देवताओं का दिन आरम्भ होता है जो आषाढ़ मॉस तक रहता है इस दिन सूर्य अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उसके घर जाते है चूँकि शनिदेव मकर राशी के स्वामी है अत: इस दिन को मकर सक्रांति नाम से जाना जाता है महाभारत काल में भीष्म पितामह ने देहत्याग के लिए इसी दिन को चुना था इसी दिन गंगाजी भागीरथ के पीछे पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होते हुए सागर में जाकर मिली थी इस कारण गंगासागर में प्रतिवर्ष विशाल मेला लगता है |

वैज्ञानिक तथ्य

हमारी पृथ्वी लगातार सूर्य का चक्कर लगाती है इसमें दो प्रकार की गतिया होती है दैनिक और वार्षिक | दैनिक गति के कारण दिन और रात होते है जबकि वार्षिक गति के कारण ऋतू परिवर्तन होता है यह परिवर्तन पृथ्वी पर दो काल्पनिक रेखाओं कर्क और मकर के बीच होती है कर्क रेखा साधे 23 डिग्री उत्तरी अक्षांश तथा मकर रेखा साधे 23 डिग्री दक्षिण अक्षांश पर होती है भारत देश उत्तरी गोलार्ध में स्थित है

मकर सक्रांति से पहले सूर्य दक्षिणी गोलार्ध में होता है अर्थात भारत से अपेक्षाकृत अधिक दूर होता है इसी कारण यहा पर राते बड़ी एवं दिन छोटे होते है तथा सर्दी का मौसम होता है किन्तु मकर सक्रांति को सूर्य उत्तरी गोलार्ध की ओर आना शुरू हो जाता है इसलिए इस दिन से राते छोटी और दिन बड़े होने लगते है और गर्मी का मौसम शुरू हो जाता है |

मकर सक्रांति पर सूर्य की राशि में हुए परिवर्तन को अन्धकार से पप्रकाश की ओर अग्रसर होना माना जाता है प्रकाश अधिक ओने से प्राणियों की चेतनता एवं कार्य शक्ति में वृधि होती है इसका मनुष्य के शरीर और मस्तिष्क पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है |

पतंग उड़ाने का वैज्ञानिक पहलू

मकर सक्रांति में पतंग उड़ाने के बहुत पुराना रिवाज है सर्दियों में हम धुप में बहुत कम निकलते है और शरीर में बहुत सारे इन्फेक्शन हो जाते है और सर्दियों में त्वचा भी रुखी हो जाती है इसलिए धुप में निकलना जरुरी होता है जब सूर्य उत्तरायण में होता है तो उस समय सूर्य की किरणों में ऐसे तत्व होता है जो हमारे शरीर के लिए दवा का काम करते है पतंग उड़ाते समय हमारा शरीर ज्यादा से ज्यादा समय तक सूर्य की किरणों के सम्पर्क में रहता है इससे हमारे शरीर को विटामिन डी प्राप्त होता है |

संस्कृतिक महत्व

मकर सक्रांति विभिन्न राज्यों में अलग अलग नामो से मनाया जाता है अगहनी फसल के कटक्र घर आने का उत्सव मनाया जाता है भारत में विभिन्न राज्यों में विभिन्न प्रकार के लोग भिन्न भिन्न बोलिया बोलते है उनके सांस्कृतिक और रीतीरिवा के अनुसार ही मकर सक्रांति का पर्व विभिन्न नामो से मनाया जाता है और इसके मनाने के तरीके भी अलग अलग है उत्तरी भारत में जहा इसे मकर सक्रांति और सक्रांति , उत्तरायण ,खिचडी अथवा सक्रांत , हरियाणा एवं पंजाब में इसे लोहड़ी के नाम से जानते है उत्तर प्रदेश में यह मुख्य रूप से दान का पर्व है इलाहाबाद में यह पर्व माघ मेले के रूप में मनाया जाता है माघ बिहू असम राज्य में एक प्रसिद्ध उत्सव है वही तमिलनाडू में इसे पोंगल के नामस इ मनाते है जबकि कर्नाटक ,केरल तथा आंध्रप्रदेश में इसे केवल सक्रांति ही कहते है |

भोजन का महत्व:-

भारत में इस महीने में बहुत सर्दी पडती है अत: शरीर को अंदर से गर्म करने के लिए तिल ,चावल ,उड़द की दाल एवं गुड का सेवन किया जाता है यूपी ,बिहार में चावल दाल ,सब्जी से बनी खिचडी खाने की प्रथा है सक्रांति में इन खाद्य पदार्थो के सेवन का भौतिक आधार है तिलों में अत्यधिक पौष्टिक तत्व होते है इनमे कैल्शियम-आयरन प्रचुर होता है इस समयतिल,उडद और चावल के नये फसल कटते है ये सारे फसल शरीर को ऊष्मा प्रदान करते है |





festival




हिन्दू महीने के अनुसार पौष शुक्ल पक्ष में मकर संक्रांति पर्व मनाया जाता है। मकर संक्रांति पूरे भारतवर्ष और नेपाल में मुख्य फसल कटाई के त्योहार के रूप में मनाया जाता है। हरियाणा और पंजाब में इसे लोहड़ी के रूप में एक दिन पूर्व 13 जनवरी को ही मनाया जाता है। इस दिन उत्सव के रूप में स्नान, दान किया जाता है। तिल और गुड के पकवान बांटे जाते है। पतंग उड़ाए जाते हैं। मकर संक्रांति मनाते सब हैं पर ज्यादातर लोग इस पर्व के बारे में कुछ नहीं जानते। प्रस्तुत है मकर संक्रांति के बारे में रोचक तथ्य।


1 . मकर संक्रांति क्यों कहते हैं?

मकर संक्रांति पर्व मुख्यतः सूर्य पर्व के रूप में मनाया जाता है। इस दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है। एक राशि को छोड़ के दूसरे में प्रवेश करने की सूर्य की इस विस्थापन क्रिया को संक्रांति कहते है, चूँकि सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है इसलिए इस समय को मकर संक्रांति कहा जाता है।

2 . सूर्य उत्तरायण

इस दिन सूर्य दक्षिणायन से अपनी दिशा बदलकर उत्तरायण हो जाता है अर्थात सूर्य उत्तर दिशा की ओर बढ़ने लगता है, जिससे दिन की लंबाई बढ़नी और रात की लंबाई छोटी होनी शुरू हो जाती है। भारत में इस दिन से बसंत ऋतु की शुरुआत मानी जाती है। अत: मकर संक्रांति को उत्तरायण के नाम से भी जाना जाता है।

3 . पतंग महोत्सव

पहले सुबह सूर्य उदय के साथ ही पतंग उड़ाना शुरू हो जाता था। पतंग उड़ाने के पीछे मुख्य कारण है कुछ घंटे सूर्य के प्रकाश में बिताना। यह समय सर्दी का होता है और इस मौसम में सुबह का सूर्य प्रकाश शरीर के लिए स्वास्थवर्धक और त्वचा व हड्डियों के लिए अत्यंत लाभदायक होता है।


4 . तिल और गुड़

सर्दी के मौसम में वातावरण का तापमान बहुत कम होने के कारण शरीर में रोग और बीमारी जल्दी लगते हैं। इस लिए इस दिन गुड और तिल से बने मिष्ठान खाए जाते हैं। इनमें गर्मी पैदा करने वाले तत्व के साथ ही शरीर के लिए लाभदायक पोषक पदार्थ भी होते हैं। इसलिए इस दिन खासतौर से तिल और गुड़ के लड्डू खाए जाते हैं।



5 . स्नान, दान, पूजा

माना जाता है की इस दिन सूर्य अपने पुत्र शनिदेव से नाराजगी त्याग कर उनके घर गए थे। इसलिए इस दिन को सुख और समृद्धि का माना जाता है। और इस दिन पवित्र नदी में स्नान, दान, पूजा आदि करने से पुण्य हजार गुना हो जाता है। इस दिन गंगा सागर में मेला भी लगता है।



6 . फसलें लहलहाने का पर्व

यह पर्व पूरे भारत और नेपाल में फसलों के आगमन की खुशी के रूप में मनाया जाता है। खरीफ की फसलें कट चुकी होती है और खेतो में रबी की फसलें लहलहा रही होती है। खेत में सरसो के फूल मनमोहक लगते हैं। पूरे देश में इस समय ख़ुशी का माहौल होता है। अलग-अलग राज्यों में इसे अलग-अलग स्थानीय तरीकों से मनाया जाता है। क्षेत्रो में विविधता के कारण इस पर्व में भी विविधता है। दक्षिण भारत में इस त्यौहार को पोंगल के रूप में मनाया जाता है। उत्तर भारत में इसे लोहड़ी कहा जाता है। मध्य भारत में इसे संक्रांति कहा जाता है। मकर संक्रांति को उत्तरायण, माघी, खिचड़ी आदि नाम से भी जाना जाता है।




15 जनवरी को मकर संक्रांति मनाए जाने का यह है गणित

मकर संक्रांति का त्योहार आमतौर पर हर साल 14 जनवरी को मनाया जाता रहा है। लेकिन साल 2015 का पंचांग इस गणित को बदल रहा है और यह त्योहार इस साल 15 जनवरी को मनाया जाएगा।

पंडित जयगोविंद शास्त्री बताते हैं कि माघ मास में सूर्य जब शनि कि राशि मकर में प्रवेश करता है तो मकर संक्रांति का त्योहार मनाया जाता है। इसलिए यह सूर्य की गति पर निर्भर करता है कि मकर संक्रांति कब मनाई जाएगी।

इस वर्ष सूर्य 14 जनवरी की शाम में 7 बजकर 29 मिनट पर मकर राशि में प्रवेश कर रहा है। शास्त्रीय मत के अनुसार पुण्यकाल दिन में माना जाता है इसलिए यह त्योहार 15 जनवरी को मनाया जाएगा। मकर संक्रांति का दान पुण्य भी 15 जनवरी को ही किया जाना फलदायी होगा।

इससे पहले साल 2012 में भी सूर्य का मकर राशि में प्रवेश 14 जनवरी की रात में हुआ था इसलिए मकर संक्रांति का त्योहार 15 जनवरी को मनाया गया था।

ज्योतिषीय गणना के अनुसार सूर्य की गति हर साल 20 सेकेंड बढ़ रही है। इस कारण से आने वाले सालों में मकर संक्रांति का त्योहार 15 जनवरी को मनाया जाने लगेगा।







मकर संक्रांति का पर्व जिस प्रकार देश भर में अलग-अलग तरीके और नाम से मनाया जाता है, उसी प्रकार खान-पान में भी विविधता रहती है. इस दिन तिल का हर जगह किसी ना किसी रूप में प्रयोग होता ही है. 


मकर संक्रांति से जुडी जानकारी के लिए हमारे साथ बने रहें.इससे जुडी कोई राय के लिए कमेंट करे..
#makarsakaranti#gfestival#tricks#trending#teep#triickks#trend#yuo#you#her#festivalnear#near#about#codercraz#codercray#crazylife#life#hacks#shayri#specieal#home#homes#fers



Post a Comment

0 Comments